चलन, चलन, स्याम कहत, लैन कोउ आयौ ।नंद-भवन भनक सुनी, कंस कहि पठायौ ।।
ब्रज की नारि, गृह बिसारि, व्याकुल उठि धाईं
समाचार बूझन कौं, आतुर ह्वै आईं ।।
प्रीति जानि, हेत मानि, बिलख बदन ठाढ़ीं ।
मानहु वै अति बिचित्र, चित्र लिखी काढ़ीं ।
ऐसी गति ठौर-ठौर, कहत न बनि आवै ।
सूर स्याम बिछुरैं, दुख-बिरह काहि भावै ।।